लघुरूद्र अभिषेक

लघु रूद्र पूजा का सामान्य अर्थ यही होता है कि शिव की ऐसी पूजा जो व्यक्ति के सभी दुखों का नाश कर देती है. भगवान शिव का एक नाम रुद्र भी है। रुद्र शब्द की महिमा का गुणगान धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
यजुर्वेद में कई बार इस शब्द का उल्लेख हुआ है। रुद्र अर्थात रुत् का अर्थ होता है दुखों को नष्ट करने वाला यानि जो दुखों को नष्ट करे वही रुद्र है अर्थात भगवान शिव समस्त जगत के दुखों का नाश कर जगत का कल्याण करते हैं।
रुद्राष्टाध्यायी के एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ किया जाता है। इसे ही लघु रुद्र कहा जाता है। यह पंचामृत से की जाने वाली पूजा है।

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Last updated Tue, 25-Aug-2020 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • इसने भगवान शिव की दिव्य कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रदर्शन किया।
  • सभी नौ (नवग्रह) ग्रहों के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए
  • यह अच्छा स्वास्थ्य, धन, दीर्घायु, बुद्धि, संतान और समृद्धि लाता है।
  • लघु रुद्र पूजा करियर, नौकरी, व्यवसाय और रिश्तों में सफलता का आशीर्वाद देती है।
  • विभिन्न रोगों, बीमारियों और नकारात्मक ऊर्जाओं से राहत और सुरक्षा के लिए लघु रुद्र पूजा की जाती है।
  • लघु रुद्र पूजा करने से इच्छाएं पूरी होती हैं और भगवान शिव की कृपा से आध्यात्मिक विकास में मदद मिलती है।

पूजाविधि के चरण
01:15:18 Hours
स्थापन
1 Lessons 00:08:22 Hours
  • सर्व प्रथम एक लकड़ी का बाजोठ /पाटला / चौकी पर , लाल वस्त्र (१ मीटर) बिछाकर उसके ऊपर मध्य में शिवलिंग की स्थापना करे। या फिर शिवजी की फोटो के ऊपर भस्म ,हल्दी ,अबीर, गुलाल ,चन्दन ,चढ़ाना हे फिर फूलो का हार चढ़ाना है। बायीं और घी से भरा हुआ दीपक जलाये जो पूजा पूरी होने तक चलता रहे। उनके आगे थाली में प्रसाद और सूखे मेवे और मिठाई रखे। 00:08:22
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थं लघुरुद्र अभिषेक पूजन करिष्ये। 00:08:22
  • रुद्राभिषेक पूजा में शिवलिंग पर जलाभिषेक शुरू करने से पहले भगवान गणेश जी का पूजन करें |
    भगवान गणेश को तिलक, चावल, फूल, नैवेद्य, दूर्वा और दक्षिणा अर्पित करें |
    अन्य आह्वान किये गए देवताओं और नवग्रह की पूजा करें |
    अब भगवान शंकर की पूजा करें | उन्हें तिलक आदि लगाएं |
    बिल्वपत्र पर चन्दन से ॐ बनाकर भगवान शिव को अर्पित करें |
    अब सभी परिवारजन खड़े होकर आरती करें |
    00:08:22

  • ॐ श्री रुद्रप्रश्नः

    न्यासः-
    अस्य श्री रुद्राद्याय प्रश्न महामन्त्रस्य
    अघोर ऋषिः
    अनुष्टुप् छन्दः
    सङ्कर्षणमूर्तिस्वरूपो योऽसावादित्यः परमपुरुषः स एष रुद्रो देवता ॥
    नमःशिवायेति बीजम् ।
    शिवतरायेति शक्तिः ।
    महादेवायेति कीलकम् ।
    श्री सांबसदाशिव प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
    ओं अग्निहोत्रात्मने अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
    दर्शपूर्णमासात्मने तर्जनीभ्यां नमः ।
    चातुर्मास्यात्मने मध्यमाभ्यां नमः ।
    निरूढपशुबन्धात्मने अनामिकाभ्यां नमः ।
    ज्योतिष्टोमात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
    सर्वक्रत्वात्मने करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
    ओं अग्निहोत्रात्मने हृदयाय नमः ।
    दर्शपूर्णमासात्मने शिरसे स्वाहा ।
    चातुर्मास्यात्मने शिकायै वषट्।
    निरूढपशुबन्धात्मने कवचाय हुम्।
    ज्योतिष्ठोमात्मने नेत्रत्रयाय वौषट् ।
    सर्वक्रत्वात्मने अस्त्राय फट्॥
    भूर्भुवसुवरोमिति दिग्बन्धः ॥

    ध्यान :-
    आपातालनभःस्थलान्तभुवनब्रह्माण्डमाविस्फुर-
    ज्ज्योतिः स्फाटिकलिङ्गमौलिविलसत् पूर्णेन्दुवान्तामृतैः ।
    अस्तोकाप्लुतमेकमीशमनिशं रुद्रानुवाकाञ्जपन्
    ध्यायेदीप्सित सिद्धयेऽद्रुतपदं विप्रोऽभिषिञ्चेच्छिवम् ॥
    ब्रह्माण्ड व्याप्तदेहा भसितहिमरुचा भासमाना भुजङ्गैः
    कण्ठे कालाः कपर्दाकलित शशिकलाश्चण्डकोदण्डहस्ताः ।
    त्र्यक्षा रुद्राक्षमालाः प्रणतभयहराः शांभवा मूर्तिभेदाः
    रुद्राः श्रीरुद्रसूक्तप्रकटितविभवा नः प्रयच्छन्तु सौख्यम् ॥
    ओं ग॒णा॑नां त्वा ग॒णप॑तिóèहवामहे क॒विं क॑वी॒नामु॑प॒मश्र॑वस्तमम् ।
    ज्ये॒ष्ठ॒राजं॒ ब्रह्म॑णां ब्रह्मणस्पत॒ आ नः॑ शृ॒ण्वन्नू॒तिभि॑ स्सीद॒ साद॑नम् ॥
    महागणपतेये नमः ॥

    पाठात्मक रुद्राभिषेक मंत्र
    ॐ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च
    मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ॥
    ईशानः सर्वविद्यानामीश्व रः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपति
    ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोय्‌ ॥
    तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
    अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररुपेभ्यः ॥
    वामदेवाय नमो ज्येष्ठारय नमः श्रेष्ठारय नमो
    रुद्राय नमः कालाय नम: कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः
    बलाय नमो बलप्रमथनाथाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ॥
    सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः ।
    भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्‌भवाय नमः ॥
    नम: सायं नम: प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा ।
    भवाय च शर्वाय चाभाभ्यामकरं नम: ॥
    यस्य नि:श्र्वसितं वेदा यो वेदेभ्योsखिलं जगत् ।
    निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थ महेश्वरम् ॥
    त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिबर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात् ॥
    सर्वो वै रुद्रास्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु । पुरुषो वै रुद्र: सन्महो नमो नम: ॥
    विश्वा भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायामानं च यत् । सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ॥
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  • जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
    अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
    ओम जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
    अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
    एकानन चतुरानन पंचांनन राजे स्वामी पंचांनन राजे
    हंसानन गरुड़ासन हंसानन गरुड़ासन
    वृषवाहन साजे ओम जय शिव ओंकारा
    दो भुज चारु चतुर्भूज दश भुज ते सोहें स्वामी दश भुज ते सोहें
    तीनों रूप निरखता तीनों रूप निरखता
    त्रिभुवन जन मोहें ओम जय शिव ओंकारा
    अक्षमाला बनमाला मुंडमालाधारी स्वामी मुंडमालाधारी
    त्रिपुरारी धनसाली चंदन मृदमग चंदा
    करमालाधारी ओम जय शिव ओंकारा
    श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगें स्वामी बाघाम्बर अंगें
    सनकादिक ब्रह्मादिक ब्रह्मादिक सनकादिक
    भूतादिक संगें ओम जय शिव ओंकारा
    करम श्रेष्ठ कमड़ंलू चक्र त्रिशूल धरता स्वामी चक्र त्रिशूल धरता
    जगकर्ता जगहर्ता जगकर्ता जगहर्ता
    जगपालनकर्ता ओम जय शिव ओंकारा
    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका स्वामी जानत अविवेका
    प्रणवाक्षर के मध्यत प्रणवाक्षर के मध्य
    ये तीनों एका ओम जय शिव ओंकारा
    त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावें
    कहत शिवानंद स्वामी कहत शिवानंद स्वामी
    मनवांछित फल पावें ओम जय शिव ओंकारा
    ओम जय शिव ओंकारा प्रभू जय शिव ओंकारा
    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
    अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
    ओम जय शिव ओंकारा प्रभू हर शिव ओंकारा
    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
    अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
    00:08:22
  • श्रद्धा अनुसार नैवेद्य
पूजन सामग्री
  • 1)बाजोठ -२ नंग और 2) पाटला -२ नंग
  • लाल/सफ़ेद -सवा मीटर
  • पंचपात्र (कटोरी)-तरभाणु(थाली)-आचमनी(चम्मच ) - ३ नंग सब
  • कलश ( ताम्बा ) -१
  • श्रीफल -१
  • फूलो के हार -3 और फूल अलग से /धरो -दूर्वा
  • कुमकुम ( रोली ) - १० ग्राम
  • चावल - १० ग्राम
  • अबीर -१० ग्राम
  • गुलाल - १० ग्राम
  • सिंदूर - १० ग्राम
  • लौंग -१० ग्राम
  • शहद - २५० ग्राम
  • शक्कर - २५० ग्राम
  • पंचमेवा - २५० ग्राम ( काजू,बादाम ,किशमिश,चिरौंजी,छुआरे )
  • पांच मिठाई - ५०० ग्राम
  • धुप - अगरबत्ती -१ पैकेट
  • चन्दन -१० ग्राम ,
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • पंचामृत - दूध ,दही, घी, शहद,शक़्कर
  • पांच फल - केले,अनार,चीकू,इत्यादि
  • कच्चा दूध - १०० ग्राम
  • देशी घी - ५०० ग्राम
  • दीपक - रुई - कपूर
वर्णन
रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि :-
“सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका” – अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को इसको करना परम कल्याण कारी है | श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है | एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
भगवान शिव अर्थात रुद्र की महिमा का गान करने वाले इस ग्रंथ में दस अध्याय हैं लेकिन चूंकि इसके आठ अध्यायों में भगवान शिव की महिमा  का वर्णन किया गया है इसलिये इसका नाम रुद्राष्टाध्यायी ही रखा गया है।
शेष दो अध्याय को शांत्यधाय और स्वस्ति प्रार्थनाध्याय के नाम से जाना जाता है।
रुद्राभिषेक करते हुए इन सम्पूर्ण 10 अध्यायों का पाठ रूपक या षडंग पाठ कहा जाता है।यदि षडंग पाठ में पांचवें और आठवें अध्याय के नमक चमक पाठ विधि यानि ग्यारह पुनरावृति पाठ को एकादशिनि रुद्री पाठ कहते हैं। पांचवें अध्याय में “नमः” शब्द अधिक प्रयोग होने से इस अध्याय का नाम नमक और आठवें अध्याय में “चमे” शब्द अधिक प्रयोग होने से इस अध्याय का नाम चमक प्रचलित हुआ। दोनों पांचवें और आठवें अध्याय पनरावृति पाठ नमक चमक पाठ के नाम से प्रसिद्ध हैं।  वहीं लघु रुद्र के ग्यारह आवृति पाठ को महारुद्र तो महारुद्र के ग्यारह आवृति पाठ को अतिरुद्र कहा जाता है।